Wednesday, September 21, 2016

प्रेम के ५ वर्ष (Prem ke 5 varsh)

हमने साथ में देखे ५ बसंत ..
देखी सारी ऋतुऐ संग संग ..
देखें दुनिया के विभिन्न रंग ,
पर साथ रहने की थी जो उमंग ,
वो हुई कभी न कम
वो हुई कभी न कम

इन वर्षों की सारी ऋतुओं को हमने करीब से देखा हैं ,
हुआ प्रेम जबसे तुमसे हैं, ऋतुओं की किसको चिंता हैं .

शीत ऋतू थी आती जब,
हम साथ लड़ा करते थे
उन सर्दियों के मौसम में हम भले खफा रहते थे ...

हो ऋतू जब बसंत की,
तब प्रेम के फूल खिला करते थे,
इन फूलों की खुश्बू में ही तो हम ज़िन्दगी जिया करते थे ...

फिर मौसम इश्क़ की बारिश का ,
जब जब आया करता था,
तुम मुझ पे मरती थी,
और मैं तुझपे मर जाया करता था..

पतझड़ का मौसम भी हमने साथ बैठ कर देखा हैं ,
इक दूसरे के नैनो से अश्को को बहने से रोक हैं..

हैं देख ली अब सारी ऋतुएं,  एक नही,  दफा पांच ,
अब आए मौसम कोई, आएगी रिश्ते पे न कोई आंच ..

आनेवाले हर मौसम को .. देखना हैं अब संग हमें ..
चाहे आ जाए तूफ़ान कोई,  संग ही लड़ना हैं अब हमें .

इस छठे वर्ष की आड़ में, हम बंधन में बांध जाएंगे ..
हैं देखें ५ वर्ष अलग अलग,  पर इस वर्ष एक हो जाएंगे ...


(Dedicated to 5 years of love & courtship that one of my close friend had and who is getting married now)

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