Thursday, December 15, 2016

हैदराबाद की होली ...

ना कोई हुड़दंग यहाँ... ना ही कोई शोर हैं...
हैदराबाद की होली तो मुझे लगती थोड़ी बोर हैं..

इन गलियों मे ना लोगों की टोली हैं,
ना किसी के हाथ मे गुलाल और रोली हैं...

ना तो डीजे की धूम हैं...
ना ही कोई हुजूम हैं...

इस हैदराबाद की धरती ने,
ना देखी होली की झूम हैं..

वो होली की धूम जो हमने देखी बनारस की गलियों में ...

वो होली की धूम जो देखी हमने कानपुर के होली मिलन समारोह में ...

वो होली की धूम जो रंग देती दिल्‍ली को पूरा लाल ...

वो होली की धूम जो राजपूत धरती पे देखे गुलाब गुलाल ...

वो होली की धूम जो मुंबई में बॉलीवुड कलाकारों को भी भिगोति हैं..

वो होली की धूम जो बिहार में नीतीश लालू के घर होती हैं ...

इस होली तो हमारे दिल में हैं बस एक उमंग..
की इस हैदराबाद की धरती पे हम चडाए कोई तो रंग..

लाल हरा नीला पीला... कोई तो रंग इसे भी भाता होगा..
कोई तो ऐसा रंग होगा,  जो यहाँ लगाया जाता होगा....

इसी उधेड़बुन में, मैं घूम रहा था हैदराबाद ज़रा...
एक छोटे से बच्चे ने पिचकारी से रंग दिया मुझे हरा...

हरा रंग चढ़ते ही ये ख्याल मेरे दिल में आया ..
निज़ामों के शहर हैदराबाद को ये ही रंग हैं भाया ..

ह से हैदराबाद , ह से हैं रंग हरा ...
इस धरती पे तो हैं समृद्धि का रंग चढ़ा ...
इस धरती पे तो हैं समृद्धि का रंग चढ़ा ...



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